Krishnapura ki Chhatriya कृष्णपुरा की छत्रियां

Krishnapura ki Chhatriya कृष्णपुरा की छत्रियां

Krishnapura ki Chhatriya कृष्णपुरा की छत्रियां

शहर के वैभवशाली इतिहास का प्रतीक है कृष्णपुरा की छत्रियां। करीब 150 वर्ष पुरानी इन छत्रियों में शिवाजीराव महाराज, तुकोजीराव महाराज (द्वितीय), यशवंतराव होलकर (द्वितीय) , कृष्णाबाई होलकर और मनोरमा राजे की समाधियां हैं। इसके बाद यशवंतराव होलकर के समाधिस्थल पर भी छत्री का निर्माण कराया गया। ये सभी छत्रियां जब तेज रोशनी में नहाती हैं तो उनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। ये छत्रियां मराठा और राजपूत स्थापत्य में निर्मित हैं। इनमें राजपरिवार के दिवंगत सदस्यों के साथ ही द्वारपाल और विभिन्न मूर्तियां भी हैं, जिनमें होलकर राज परंपरा की वेशभूषा की झलक भी दिखाई देती है। छत्रियों के शिखर, कंगूरे और मेहराबों पर आकर्षक शिल्प है। परंपरा के मुताबिक छत्रियों में शिवलिंग की स्थापना की गई हैं, साथ ही जिनकी छत्री है उनकी मूर्तियां भी लगाई गई हैं। जिसे आप तस्वीरों में देख सकते है |

इनमे अगर हम भीतर से देखे तो बाये हाथ की पहली छोटी छतरी महाराजा यशवंत राव होलकर (द्वितीय) की है जिनकी मृत्यु सन 1961 में हुई, उसके बाद कृष्णाबाई होलकर (मृत्यु सन 1849 ) की छतरी है फिर तो छत्रिय सयुक्त रूप से बनी है जिनमे महाराजा तुकोजीराव होलकर (द्वितीय मृत्यु सन 1886 ) और महाराजा शिवाजी राव होलकर की समाधी है अंत में मार्बल की बनी छतरी मनोरमा राजे (मृत्यु सन १९३६, आप महाराजा तुकोजीराव तृतीय की पुत्री) की है |

छत्रियों के निर्माण की शुरुआत कृष्णाबाई की छत्री से हुआ। इसके बाद तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) और शिवाजीराव होलकर की छत्रियों का निर्माण किया गया। आजादी के बाद भी दो छत्रियां बनाई गईं।

इनकी नक्काशी देखते ही बनती है जिनमे दरबान, बेल, बूटे इत्यादि है |

इसमें सन् 1950 में मनोरमाराजे और सन् 1997 में महाराजा यशवंतराव की छत्री का निर्माण उषाराजे ने कराया। मनोरमा राजे की छत्री पूरी तरह से मार्बल से बनी हुई है। कृष्णाबाई की छत्री का संरक्षण पुरातत्व विभाग करता है वहीं अन्य छत्रियां खासगी एवं आलमपुर ट्रस्ट माणिकबाग की देखरेख में है।

कृष्णाबाई के नाम पर ही 1849 में तुकोजीराव द्वितीय ने कृष्णपुरा पुल भी बनाया गया था। कृष्णाबाई को छोटी अहिल्याबाई कहा जाता है। उन्होंने ही गोपाल मंदिर और महेश्वर में घाट का अधूरा निर्माण पूरा कराया था। इस घाट के निर्माण की शुरुआत अहिल्याबाई ने की थी।

बताया जाता है कि छत्रियों के निर्माण से पहले खान नदी के किनारे यहां एक धर्मशाला और मदरसा थी। जिन्हें वहां से हटाया गया था। मदरसे को जहां स्थानांतरित किया गया था वहां अब शिवाजीराव स्कूल है। देवी अहिल्या खासगी ट्रस्ट द्वारा इतने वर्ष बाद भी भोग का ‘थाला’ (भोजन से सजी थाल) लगाया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त पास में ही बोलिया सरकार की छत्रिया भी है | जो की छतरियो के करीब ही है और सामने आप वीर सावरकर मार्केट देखा सकते है | कृष्णपुरा की छत्रियो के पास में ही नंदलालपुरा की सब्जी मण्डी भी है |
Krishnapura ki Chhatriya कृष्णपुरा की छत्रियां

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Boliya sarkar ki chhatriya

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