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यह वेबसाइट कुछ समाचार पत्रों में अपना नाम दर्ज करा चुकी है जिनमे हिन्दुस्तान लाइव और डीएनए प्रमुख हैहिन्दुस्तान लाइव में आई न्यूज़ जिसे रवीश कुमार ने लिखा है :
ब्लॉग वार्ता : हे कि नी भिया
First Published:14-12-2010 09:39:51 PMLast Updated:14-12-2010 10:04:52 PMरवीश कुमार
इंदौरी स्टाइल में बार-बार बोला जाता है यह जुमला। इंदौर के इस मिजाज को ब्लॉग पर अवतरित करने की जहमत उठाई है देवेंद्र ने। बातें इंदौर की शीर्षक वाले लेख में वीडियो भी पोस्ट किया गया है, ताकि आप सुनकर इंदौर के बोलने की शैली और उसका पूरा लुत्फ भी उठा सकें। देवेंद्र ने इस बातचीत की कई मिसाल दी हैं। ‘अपने लिए कोई मुश्किल नी था भिया।’ नहीं की जगह नी और भैया की जगह भिया। ‘आज देखो क्या माहौल चल रिया है। जो देखो जो भागा चला जा रिया है।’ मालवा की शैली की पूरी झलक मौजूद है यहां। इस ब्लॉग पर जाने के लिए क्लिक कीजिए https://myindorecity.blogspot.com
बरेली में लोग बोलते हैं चल रिया है। इंदौर में बोलते हैं- ‘आज की डेट में अपन को टिकिट हंस के देते सारी पारटी वाले।’ दिवंगत पत्रकार प्रभाष जोशी अपने लेखों में ‘अपन’ का इस्तमाल करते थे। मगर उन्होंने रिया और भिया का इस्तेमाल शायद नहीं किया है। ‘केने को तो सब केते रेते हैं, पर उस्ताद एक तेम पे अपना वो जलवा था कि पुछोई मत।’ ‘ऐ!! क्या केरे हो! सई में!’ कई फिल्मों के संवाद इंदौरी शैली में हैं। जगदीप जैसे हास्य अभिनेताओं ने खूब इस्तेमाल किया है। फिल्म शोले में सूरमा भोपाली का किरदार इसी तरह की शैली में बोलकर काफी लोकप्रिय हुआ था।
हाल ही में इंदौर गया था। सचमुच, यह कमाल का शहर है। यहां सैकड़ों की संख्या में अखबार छपते हैं। प्रेस क्लब के प्रभारी ने बताया कि कई लोग हैं, जो एक साथ कई अखबार लेते हैं। प्रेस क्लब देखकर हैरान रह गया। वहां सरस्वती की मूर्ति लगी है। शराब पीना मना है। कांफ्रेंस रूम बेहतरीन है। वहां के पत्रकार बिना पिए पत्रकारिता कर रहे हैं। प्रेस क्लब की नई इमारतें बन गई हैं, लेकिन पुरानी इमारत को संजो कर रखा है, जिसकी यादें राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी से जुड़ी हैं। ऐसी बात नहीं है कि मीडिया में लोग भरोसा कमा कर इस दुनिया से नहीं गए हैं। दुनिया ने भी उन्हें खूब याद रखा है।
खैर देवेंद्र आपको अपने ब्लॉग पर इंदौर शहर की अलग-अलग जगहों की यात्रा करवा रहे हैं। वे हमें ले चलते हैं मल्हारगंज थाने के सामने लाल अस्पताल। टीबी का अस्पताल है यह। इसके परिसर में एक बावड़ी है जिसे तात्या जोग की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। इसी बहाने तात्या जोग का इतिहास बताते हैं, जिनका असली नाम विट्ठल महादेव किबे थे। एक मुहावरा बड़ा प्रचलित था। होलकर का राज और किबे का ब्याज यानी कि राज्य का जितना बजट होता था, उतना ही किबे परिवार का ब्याज होता था। तात्या की बावड़ी से नब्बे तक नगर निगम के टैंकरों को भरा जाता था। अब यह बावड़ी बंद हो गई है। कुछ वैसे ही जैसे देश के दूसरे छोटे बड़े शहरों की बावड़ियां बंद हो गई हैं। उन्होंने शहर की जरूरत को पूरा करना क्या बंद किया तो अब शहर को भी वे बहुत जरूरी नहीं लगतीं।
ब्लॉग में बहुत ही तरीके से शहर के चलताऊ इतिहास को कवर किया गया है। शायद इन्हीं सब प्रयासों से ब्लॉग की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। अपने शहर की यादों को पब्लिक स्पेस में संजो कर रखने का यह एक अच्छा माध्यम तो है ही। देवेंद्र मल्हारगंज में ही नवीन चित्र सिनेमा के बारे में बता रहे हैं। इस सिनेमा हॉल में कभी अद्दा सिस्टम चलता था। इसके तहत इंटरवल के बाद की फिल्म देखनी है, तो आप किसी से भी उस समय की कीमत पर अद्दा खरीद कर फिल्म देख सकते थे और यदि आपने इंटरवल के बाद की फिल्म देख रखी है और पहले की फिल्म देखनी है, आप टिकट खरीद कर इंटरवल में उसे बेच सकते हैं। दो किश्तों में फिल्म देखने की यह परंपरा अब शायद ही कहीं हो, पर यह है बहुत दिलचस्प चीज। वैसे इंदौर का फिल्मों से पुराना नाता रहा है। लता मंगेशकर का जन्म इंदौर में ही हुआ था। किशोर कुमार यहीं के क्रिश्चियन कॉलेज के छात्र थे। सी के नायडू, मुस्ताक और नरेंद्र हिरवानी सहित सलीम खान और जानी वॉकर जैसे इंदौरियों को कौन भूल सकता है। देवेंद्र अपन के शहर का परिचय देते हुए लिखते हैं- हैलो दोस्तो, आप लोगों को पता है इंदौर का नाम इंदौर कैसे हुआ। पहले इन्दुर था जो मराठों द्वारा बनाए गए इंद्र भगवान के मंदिर के नाम पर पड़ा। इंदौर इकलौता शहर है, जहां आईआईटी और आईआईएम दोनों हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल है, मगर दिल इंदौर ही है। रजवाड़े का भी विस्तार से वर्णन है। अच्छी बात है कि इस ब्लॉग पर वीडियो तस्वीरें भी लगाई गई हैं।
ravish@ndtv.com लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.comडीएनए इंदौर में प्रकाशित खबर 23.06.2012
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If you don’t want to get lost while travelling in Indore, you can visit https://www.myindorecity.blogspot.com/ to get relevant information, including the city’s routes etc. Written by Indore-based student Devendra Gehlot, the blog offers details about Indore’s history, road, bus routes etc and also shares important incidents and events that took place in the city. Youngsters can also find out more about the festivals and old traditions of the city through this blog.