सन 1884 में ही इंदौर में हवा महल नामक मजबूत चट्टानी मोटी-मोटी दीवारों के साथ बनवाना प्रारंभ हुआ | इस महलनुमा किले को महाराजा इतना ऊँचा बनाना चाहते थे कि उपरी मंजिल कि छत पर तोपे जमाकर के यही से अंग्रेजो कि महू स्थित छावनी को नेस्तनाबूत किया जा सके | अंग्रेज ए.जी.जी. व गुप्तचरो की सूचनाओ के आधार पर अधबीच में ही ब्रिटिश सरकार ने निर्माण कार्य रुकवा दिया | फिर भी जितनी इमारत बन चुकी थी वह आधुनिक इंदौर में अपनी शिल्प और सुदृढता के कारण आज भी सराही जाती है | अधूरी होने के कारण ही यह फुठी कोठी के नाम से भूल-भुलैया का नमूना बनी रही | इस दिव्य भव्य ईमारत के पुरे निर्माण की ऊंचाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके बचे हुए लाखो चट्टानी लाल पत्थरो से पुराना विशाल हाईकोर्ट भवन तोपखाना तथा वर्तमान एडवर्ड हाल (गाँधी हाल) बनाया गया |