इंदौर में राजवाड़े के करीब ही यशवंत रोड पर इमली साहिब गुरुद्वारा स्थित है | पहले आप सब को यह बता दिया जाय कि उन्ही गुरूद्वारे को साहिब कहा जाता है जहा गुरुनानक साहब रुके थे | इंदौर के बाद आप बेटमा रुके थे जहा बेटमा साहिब गुरुद्वारा स्थित है|
विक्रम संवत 1668 में गुरुनानक साहब अपनी दूसरी उदासी के समय दुनिया को मानवता का पाठ पढाते हुए इंदौर पहुचे और यहाँ इमली के पेड के नीचे रूककर इंदौरवासियो को प्रेम का सन्देश दिया | जहा वर्तमान में इमली साहिब गुरुद्वारा स्थित है |
दूसरी बार सिखो का इंदौर में आगमन फौजियो के रूप में हुआ, जब राजकुमार यशवंत राव होलकर ने अपनी रियासत की रक्षा के लिए सिख फोजियो की मांग पंजाब में महाराजा रणजीतसिह से की| आपने फौजी पंजाब से इंदौर भेजे| इन फोजियो ने अंग्रेजो के बढते प्रभावों तथा कंजर जाति के लुटेरो से होलकर राज्य की रक्षा की| इन्होने अपने हथियार व तोप गोला-बारूद आदि को एक बैरक में रखा था| सिखो की बहादुरी के कारण ही महाराजा होलकर ने आप लोगो को बहुत सारी जमीन इनाम स्वरूप भेट की| यह जमीन वर्तमान का सिख मोहल्ला है और बैरक एम जी रोड स्थित गुरुद्वारा तोपखाना है| 1933 में स्व. कर्नल तारासिंह की धर्मपत्नी काशीबाई ने अपनी सम्पूर्ण जायदाद इस गुरूद्वारे के नाम कर दी|
स्व. दर्शनसिंह आईजी, स्व. लेफ्टिनेंट रामसिंह व स्व. दलजीतसिंह खालसा के अनुसार तीसरी बार इंदौर सिखो का आगमन लकड़ी व्यवसाय के कारण हुआ|
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