Dr.D.P. Mourya (डॉ. देवीप्रसाद मौर्य) गणितज्ञ, साहित्यकार, समाजसेवी

Dr.D.P. Mourya  (डॉ. देवीप्रसाद मौर्य)
प्रतिभा कहीं से भी सिर उठाकर सीनातान कर सामने आ सकती है, एक मिल मजदूर की संतान देवीप्रसाद मौर्य चिमनी की रोशनी में भी जमकर पढ़े और बीएससी के बाद गणित में डॉक्टरेट हासिल की | संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी,और हिंदी को आत्मसात करने वाले डॉक्टर मौर्य गणितज्ञ, साहित्यकार, समीक्षक, समाजसेवी, चित्रकार थे |

डॉक्टर देवीप्रसाद मौर्य अपने मिल मजदूर पिता सुखराम मौर्य के चाहते थे | पिता चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा आठवीं पास करने के बाद रोजगार से लग जाए, लेकिन रोजगार प्राप्त करने और शिक्षा को आगे बढ़ाने की जद्दोजहद वर्षों लंबी खिंच गई | होलकर विज्ञान महाविद्यालय ,इंदौर से बीएससी पास करने के बाद ही उन्हें काम मिल सका | जिस दिन उन्हें निम्न श्रेणी शिक्षक के पद का नियुक्ति आदेश पत्र मिला उस दिन परिवार में खुशियां मनाई गई |

श्रमिक बस्ती परदेशीपुरा के टीन की छत वाले उनके कच्चे किराए के मकान में अंधेरा तो पूर्वक था लेकिन आंखों में उज्जवल भविष्य की रोशनी समा गई थी | मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि गणित में डॉक्टरेट करने वाले मौर्य जी की बीएससी तक की पढ़ाई चिमनी के उजाले में हुई थी | गणित के विशिष्ट फलन स्पेशल फंक्शन के क्षेत्र में डॉक्टर मौर्य ने अपना एक मौलिक फलन तैयार किया है जो कि पिछले सभी ज्ञान (एक या एक से अधिक चरो वाले फलन) फलनो को अपने में समेटे हुए हैं | गणित का शोध करने वालों के लिए डॉक्टर मौर्य का यह शोध प्रबंध अनुकरणीय है | डॉक्टर मौर्य के गणित से संबंधित शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं |
Dr DP Mourya Hand written Magazine Jagruti

प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत्त होने वाले डॉक्टर मौर्य ने साहित्य सृजन, साहित्यकारों की एकजुटता, साक्षरता अभियान, जाति संबंध में सांप्रदायिक सद्भावना और समाज सेवा के क्षेत्र में इतना कुछ उल्लेखनीय कर डाला है कि वे इंदौर में एक दीप स्तंभ माने जाते थे |

डॉक्टर मौर्य में साहित्य सृजन करने और साहित्य सृजन के लिए अन्य लोगों को प्रेरित करने का भाव हाईस्कूल के छात्र थे तभी से अंकुरित हो चुका था | परदेशीपुरा का वह लावारिस खंडहर जहां अब जैन मंदिर है कभी डॉक्टर मौर्य और उनके बाल साथियों की गतिविधियों का केंद्र था यहां डॉक्टर मौर्य व उनके साथीयों ने हस्तलिखित पत्रिका जागृति का संपादन वर्ष 1956 में किया | परदेशीपुरा में सामाजिक चेतना के लिए कई सांस्कृतिक कार्यक्रम दिए कभी-कभी जब इस केंद्र के रंगकर्मी आसपास के किसी गांव के सिर्फ पार्टी पर निकलते तो वहां भी डॉक्टर मौर्य के निर्देशन में कोई ना कोई नुक्कड़ नाटक नुमा कार्यक्रम देते थे |

वर्ष 1989
में डॉक्टर मौर्य व परदेशीपुरा के मित्रो नें कल्याण मित्र समिति की स्थापना की इस के अंर्गत श्रमिक क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई केंद्र चलाए गए फुटपाथी बच्चों के शिक्षण -प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई, यह संस्था वर्तमान में भी आस्था वृद्धा आश्रम, इंदौर का संचालन कर रही है |

साक्षरता के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था भारत ज्ञान विज्ञान समिति इंदौरजनवादी लेखक संघ इंदौर के अध्यक्ष पद पर वर्षो कार्य किया,अनेक जनसंगठनों के साथ अंतिम समय तक सक्रिय रहे |

प्रारंभ में रचनात्मक साहित्य में कविता और ललित निबंधों, वैचारिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशित होते रहे है | डॉक्टर मौर्य का मार्क्सवाद, दर्शन, राजनीती, समाज साहित्य पर गहरा अध्ययन था, वे गांधीवाद और साम्यवाद के प्रबल समन्वयक थे | उन्होंने गाँधी पढ़ा ही नहीं बल्कि पाने जीवन में उतारा भी था |

डॉक्टर मौर्य ने एक अखबार में विज्ञान से संबंधित साप्ताहिक स्तंभ का संपादन भी किया | संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, और हिंदी को आत्मसात कर लेने वाले मौर्य जी कि भारतीय समाज का आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विश्लेषण करने वाली पहली कृति क्रांति के पहले 1983 में अस्तित्व में आई थी |

dr. dp Mourya Books

क्रांति के पहले, भारतीय लौकिक चिंतन और चार्वाक, सहज समागम, मंडूकक्योंपाख्यान, जीवन का यथार्थ और वर्तमान जगत प्रकाशित पुस्तकें हैं |
  1. क्रांति के पहले ,चौखम्बा प्रकाशन ,इंदौर वर्ष 1983 
    क्रांति के ऐतिहासिक सामाजिक संदर्भ का एक समग्र विश्लेषण प्रस्तुत है | लेखक का मानना है हिंदुस्तानी लोग अपनी सामाजिक ताकत को पहचाने | यदि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ को अच्छी तरह समझ लिया गया तो अपने आप ही सही राजनीति का उदय होगा |
  2. भारतीय लौकिक चिंतन और चार्वाक, नेशनल पब्लिकेशन हाउस दिल्ली से वर्ष 2005 में प्रकाशित है |
    इस स्थिति में चार्वाक विचार के बहाने यह लौकिक जीवन की सार्थकता के चिंतन को पुनर्स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है यहां हम देखते हैं कि चार्वाक विचार पद्धति कार्ल मार्क्स के सामाजिक दार्शनिक चिंतक से काफी सम्यक रखती हैं बल्कि भारतीय समाज के अनुरूप लोकतांत्रिक विविधता के प्रगति परख जीवन का प्रतिपादन करती है | आज संपूर्ण विश्व एक सामाजिक इकाई बन चुका है तब धार्मिक निष्ठाओ के स्थान पर वैज्ञानिक-दार्शनिक लोक दृष्टि का स्वाभाविक विकास हो रहा है | प्रस्तुत पुस्तक भारतीय चिंतन के इसी सामर्थ को प्रकट करने का एक प्रयास है |
  3. सहज समागम( (बौद्ध ध्यान, सराह ,गोरख और कबीर की आधुनिक मीमांसा) रोशनाई प्रकाशन कांचरापाड़ा पश्चिम बंगाल 2008 | इस कृति में गुरु गोरखनाथ से लेकर संतकबीर तक की भारतीय संस्कृति की परंपरा के साथ ही अंतरराष्ट्रीय अध्यात्म आंदोलन और भारतीय मानस का विश्लेषण है |
  4. मंडूकक्योंपाख्यान (भारतीय आत्मत्व की आधुनिक समीक्षा) वर्ष 1999 प्रकाशक कल्याण मित्र प्रज्ञा संस्थान, इंदौर कृति में शंकराचार्य के मायावाद का मार्क्सवादी दृष्टिकोण से खंडन करते हुए माण्डुक्य के उपनिषद का सांस्कृतिक विवेचन किया गया है |
  5. जीवन का यथार्थ और वर्तमान जगत, कल्पज पब्लिकेशन नई दिल्ली, वर्ष 2009 है |
    यह कृति पुरातन भारतीय समाज के पूर्व आधुनिक और उतर आधुनिक सामाजिक -सांस्कृतिक प्रत्ययों और विषयों का ऐतिहासिक विवेचन प्रस्तुत करती है | सभी प्रकार के चिंतन में मूल समस्या वस्तुपरक सत्ता की सही ढंग की ज्ञान मीमांसा की रही है | सत्ता और ज्ञान के इस द्वंद का निराकरण प्रस्तुत कृति में महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन के यथार्थवादी प्रत्ययों से किया गया है | वै इसके तात्पर्य में पश्चिमी दार्शनिक और वैज्ञानिक प्रतिपंक्तियों की झलक देखी जा सकती हैं | भारतीय संदर्भ में उत्तर आधुनिकता का विवेचन इस ग्रंथ में मार्क्स- गांधी विचार के द्वंदात्मक विश्लेषण के साथ भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का निरूपण किया गया है
अप्रकाशित
1 भारतीयता का उत्तर विमर्श, लेख संग्रह
2 इतिहास हमसे अलग नहीं, निबंध संग्रह
3 Realities and life (Modern Comments on Ancient Indian Realism)
4 विज्ञान विस्मय,लेख संग्रह
5 गिरती दीवार का दु:ख,

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