इस ब्लॉग के पिछले अंको को पढ़कर आप यह तो जान ही गए होंगे की इंदौर अपने आप में कई समुदायों और धर्मो को समेटे हुए है, और यह रानी अहिल्याबाई के कारणों से शिव भगवान को अर्पित रहा है | वैसे तो भारत में अनेक राज्यवंश हो चुके है परन्तु वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का मेवाड़ (उदयपुर) और राजयोगिनी माता अहिल्या का इंदौर ऐसे दो आदर्श राज्य रहे है जहा के शासक अपने आप को भगवान् महादेव का मात्र प्रतिनिधि मानकर शासन संचालन करते थे | उनकी मान्यता थी की सारा राज्य तो भगवान् शिवशंकर का ही होता है और राजे-महाराजे उनके स्थानापन्न शासक होते है | इस संदर्भ में एक बात और रेंखांकित करना होगी की होलकर राज्य के सभी शासक पूर्णत: धर्मनिरपेक्ष रहे |
सन 1735 के लगभग पंडित मंगल भट्ट के स्वप्न में गणेश जी आए और उन्होंने इस स्थान से प्रकट होकर जनता का उद्धार करने की बात कही | तब यहाँ कलश से प्रकट हुए गणेशजी का मंदिर पूर्ण विधिविधान से स्थापित किया गया | तब से यहाँ नगर के ही नहीं विदेश के भी श्रद्धालुजन अपना शीर्ष नवाने आते रहे है | आज भी जो भारतीय विदेशो में बसे है वे अपनी यात्रा में खजराना मंदिर की यात्रा नहीं भूलते | श्रद्धालुओ की मान्यता है की यहाँ मांगी गई मुरादे अवश्य पूर्ण होती है | यहाँ मान्यता है की अपनी मुराद मन में रखकर यहाँ धागा बाँधा जाये तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है व् मनोकामना पूर्ण होने पर वह धागा खोल दिया जाता है |
मंदिर का परिसर काफी भव्य और मनोहारी है, परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य 33 छोटे-बड़े मंदिर और है | मुख्य मंदिर में गणेशजी की प्राचीन मूर्ति है इसके साथ-साथ शिव और दुर्गा माँ की मूर्ति है | इन 33 मंदिरों में अनेक देवी देवताओ का निवास है | मंदिर परिसर में ही पीपल का एक प्राचीन वृक्ष है इसे भी मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है | मंदिर में आने वाले भक्तगण इसकी परिक्रमा अवश्य करते है | यह मंदिर सर्वधर्म समभाव का बहुत अच्छा उदाहरण है, यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण दर्शन को आते है | प्रत्येक बुधवार को यहाँ उत्सव का आयोजन होता है |
कुछ वर्ष पूर्व विवादों के चलते इस मंदिर को जिला प्रशासन के अंतर्गत लिया गया है व अब कलेक्टर के निर्देशानुसार एक समिति का निर्माण किया व इस समिति में भट्ट परिवार अपना सक्रिय योगदान देता है | मंगल भट्ट के परिवार के सदस्य ही आज भी इस मंदिर की पूजा अर्चना का कार्य करते है |
महाराजा तुकोजीराव तृतीय और उनकी अमेरिकन पत्नी महारानी शर्मिष्ठादेवी समय-समय पर अपने परिवार सहित खजराना मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आते थे और अहिल्याबाई होलकर के राज्यकाल से होलकर शासन की और से दिया जाने वाला अनुदान इस मंदिर के रखरखाव के लिए दिया जाता रहा है | माता अहिल्या के राज्य में 1717 के जून माह की 27 तारीख को एक विज्ञप्ति जारी की गई थी जिसमे राज्य के समस्त रहवासियो से समय-समय पर होने वाले आयोजनों पर ब्राह्मण भोजन के लिए सभी जातियों से उदारतापूर्वक दान देने के लिए कहा गया था |
मल्हारराव होलकर के शासनकाल में परमारकालीन मंदिर था जिसे खेडापति हनुमान मंदिर कहा जाता था जो आज तक विद्यमान है संयोगवश एक मुस्लिम व्यक्ति इस मंदिर की देखभाल किया करता था, इसके चलते उस समय के हिन्दुओ को यह बात अनुचित लगी होगी, जिस कारण से मल्हारराव होलकर ने उस मुस्लिम व्यक्ति को खजराना नामक गाव में जागीर प्रदान की गई थी | अपने ससुर के पदचिन्हों पर चलते हुए अहिल्याबाई ने भी खजराना नमक स्थान में लगभग 15 बीघा भूमि एक मुस्लिम सज्जन को सनत देकर प्रदान की थी | उस व्यक्ति का नाम नाहर पीर था | इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक दरगाह भी है और माँ कालका का मंदिर भी है |
आप इस मंदिर के दर्शन को कभी भी आ सकते है परन्तु बुधवार के दिन यहाँ विशेष आयोजन होते है | और अगर आप कुछ विशेष उत्सव देखना चाहते है तो आप गणेश चतुर्थी को आवे |
बहोत ही अच्छी जानकारी .........आभार
बहुत सुन्दर आलेख. छोटी छोटी वर्तनी की त्रुटियाँ हैं. सुधार लें.