जब हम खजराना जाते है तो वहा हमें खजराना के पहले चौराहे पर एक मूर्ति दिखाई देती है जो की सहस्त्रअर्जुन की है हा आप उनकी तस्वीर भी देख सकते है |
नाहर शाह वली दरगाह इंदौर की सबसे पुरानी दरगाह है | यह खजराना क्षेत्र में स्थित है यह कालका माता मंदिर से थोड़ी दुरी पर है | नाहर शाह वली दरगाह असल में "हजरत सय्यद गाजिबुद्दीन इराकी रहमतुल्ला अली " की दरगाह है आप इराक से आए थे |
यह दरगाह लगभग 350 वर्ष पुरानी है | इस मंदिर में कुछ वर्ष पूर्व छत पर काच की नक्काशी का कार्य करवाया गया और नयी आस्तीन ( दरगाह के पास की दीवार ) बनवाई गई | यह संगमरमर की बनी है दरगाह का प्रवेश द्वार काफी बड़ा बना है और अन्दर बड़ा सा मैदान है | यह दरगाह फ़िलहाल वक्फ बोर्ड के अधिपत्य में है |
जब औरंगजेब बादशाह दक्खन को जितने के लिए आए थे तो इंदौर में नाहर शाह वली ने आपके लिए दुआ की थी और आप जंग को जीत गए आपके देहावसान के बाद आपकी आखिरी नमाज पढवाई थी |
जब होलकर बादशाह यशवंत राव होलकर की किडनी का आपरेशन होना था तब यहाँ से मन्नत मांगी गई थी और आपरेशन सफल होने से आज तक यहाँ होलकर राज्य की तरफ से चादर चढ़ाई जा रही है |
इस दरगाह में प्रवेश करने हेतु आपको एक बड़े से द्वार से भीतर जाना होगा यहाँ काफी बड़ा मैदान है और कई बड़े द्वार है | दरगाह वाले बाबा का लकब ( जो सर्वमान्य नाम, जिससे आपकी पहचान हो ) गाजी ( किले पर पहले झंडा गाड़ने वाला ) पढ़ा क्योकि आपने खुद ने कई लड़ाइया लड़ी |
रही बात इसे नाहर शाह वली दरगाह नाम होने की तो बात ऐसी है की
मालवा की भाषा में शेर को नाहर भी कहा जाता है और इस दरगाह पर कई शेर आकर बैठे रहते थे जिस कारण से इस दरगाह का नाम नाहर शाह वाली दरगाह हुआ |
मालवा की भाषा में शेर को नाहर भी कहा जाता है और इस दरगाह पर कई शेर आकर बैठे रहते थे जिस कारण से इस दरगाह का नाम नाहर शाह वाली दरगाह हुआ |
इस दरगाह की सबसे बड़ी खासियत है की यहाँ अधिकतर लोग बच्चो के वास्ते मन्नत मांगने आते है और मन्नत पूरी होने पर तुला दान होता है |
एक बात और इस दरगाह में लगभग सभी धर्म के लोग माथा टेकने आते है, इस दरगाह के सामने हजरत मस्तान बाबा की दरगाह भी है | और यहाँ पर हर वर्ष कौमी उर्स का आयोजन होता है जो की फ़रवरी माह में होता है |
इस दरगाह में जो बाबा है जो की इस दरगाह की देखरेख करते है वे एक नायता पटेल है और उनके पुरखो ने धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म अपनाया आपके दादा और पिता भी यहाँ के खानदानी खादिम रह चुके है जिनके नाम क्रमश: हाजी अकबर बाबा और हाजी मंसूर बाबा है | और जो बाबा अभी यहाँ के खादिम है उनका नाम अमजद बाबा है |
इस दरगाह तक पहुचने के लिए आपको खजराना मंदिर से कालका माता होते हुए जाना पड़ेगा |
कालका माता मंदिर जिसकी स्थापना को अधिक वर्ष नहीं हुए है इसका निर्माण 1 अप्रैल, 1986 ( चेत्र क्रिशन सप्तमी संवत 2042) में हुआ और यहाँ मूर्ति स्थापना 31 जुलाई, 1978 ( श्रावण शुक्ल पंचमी संवत 2043) एवं प्राण प्रतिष्ठा फाल्गुन शुक्ल तीज संवत 2047 यानि 17 फरवरी 1991 में हुई | यहाँ कालका माता की मूर्ति है वह पूर्णत: काले पत्थर की बनी है |
कालका माता मंदिर जिसकी स्थापना को अधिक वर्ष नहीं हुए है इसका निर्माण 1 अप्रैल, 1986 ( चेत्र क्रिशन सप्तमी संवत 2042) में हुआ और यहाँ मूर्ति स्थापना 31 जुलाई, 1978 ( श्रावण शुक्ल पंचमी संवत 2043) एवं प्राण प्रतिष्ठा फाल्गुन शुक्ल तीज संवत 2047 यानि 17 फरवरी 1991 में हुई | यहाँ कालका माता की मूर्ति है वह पूर्णत: काले पत्थर की बनी है |
Nahar shah wali rehmatullah bahot jalali he
Allah ke sache wali hai ..
बहुत सी जानकारी गलत है जैसे ये दरग़ाह 500 बरस पुरानी नहीं है। जैसा कि आपने भी लिखा कि औरंगजेब ने बाबा की जनाजे की नमाज पढ़ाई। ओरंगजेब का कार्यकाल आज से सन 1658 से लेकर 1707 तक रहा है। यानि करीब अगर हम 1658 भी मान लेवे तब भी सिर्फ 362 साल हुए। 150 साल का फर्क आ रहा है जो तर्कसंगत नहीं। दूसरी बात इस दरगाह के ख़ानदानी मुजावर अकबर पटेल नहीं है बल्कि मेरे शाह परिवार के लोग है जिन्हें 1772 ईसवी में मुगल सम्राट शाह आलम ने सनद भी दी थी। जो मुजावरों ने आपको बता दिया आपने विश्वास करके लिख दिया। खैर सुधार की जरूरत है 9340949476 में आपको दरगाह के कागजात दिखा सकता हूँ
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! मुझे उस समय जैसी जानकारी मिली थी दरगाह से वही जानकारी लिखी गई है अगर इसमें कुछ गलत है जैसा कि आप कह रहे है तो आप सही जानकारी लिखकर हमें Myindore09@gmail.com पर भेज सकते है हम इस लेख को अपडेट कर देंगे |